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सौतेला बाप ( भाग - 2)

भाग - २

सभी कुनबे के लोग प्रसन्नता से फूले ना समा रहे थे आखिर सबने मिल के जो ये फैसला लिया था और लड़का इतना अच्छा की पूछो मत ,सभी एक एक करके उस लड़के को देखने आने लगे।घर की औरते तो दूर से ही झांक रही थी, सभी मर्द अपने मूछों पर ताव देते ऊपर से नीचे तब सौतेले बाप की कद काठी देख अंदेशा लगा रहे थे की ऊ लड़ने में अच्छा होगा!सभी मधुआ के सौतेले बाप को लेकर वहीं कोठर के सामने लेकर बतियाने को गए अब सबसे बड़ी समस्या उसे बिठाने की।मधुआ का सौतेला बाप दूसरे देश जिसका नाम " कलकत्ता " था वहां से पढ़ के आया था और फिलहाल रहता गांव के छोर पर था गांव के स्कूल का सरकारी मास्टर था , कुछ हफ्तों पहले तबादला हुआ था  , अनाथ था तो खुद ही फैसला लिया कि फुलवा जैसी विधवा को ब्याह कर नई जिंदगी देगा।पर यहां गांव में सबसे बड़ी समस्या आन पड़ी कि कहां बिठाएंगे उस एक गरीब विधवा के घर इतनी महंगी चीज। पूरे कुनबे में हल्ला था मधुआ के सौतेले बाप का " कलकत्ता " नामक दूसरे देश से पढ़के आने का , वह कुनबा इतना छोटा था कि ठकुराने से शुरू होकर उंगली भर घर छोड़ नीची जाति के कुनबे तक ही था और वहां से कहीं बाहर जाना मतलब उनके लिए देश के बाहर जाना।अब तो भिड़ में दुबारा खुसुर फुसुर चालू। 

वहीं उस घर के सामने एक झोपड़ में जहां से नीची जाति का कुनबा चालू होता है वहीं गबरू अपने घर के आगे झाड़ू लगा कर सामने वाले कुनबे का कार्यक्रम देख रहा था और उस विकट परिस्थितियों को भाप चुका था आखिर नया नवेला होने वाला दुल्हा बैठेगा कहां। 

गबरू ख़ुद से हाथ मलते हुए आगे कांपते पैरो से बढ़ा फिर रुक गया और खुद से बोला - " पंडित बाबा से कहूं तो किस मुंह से ,ऐसा न हो की खटोले की नामौजूदगी में दुलहा कहीं चले न जाए।" 

वहीं मधुआ के कोठर के सामने सभी बैठे सोच ही रहे थे क्या करे क्या ना करे। 

" जा जल्दी लेकर आ कुछ।" 

" हां! जाता हूं , लेकिन किसी ने सोचा , बैठेंगे किसपे दूल्हे राजा।" 

" भग!....चल जा...जा खटोला लेकर आ बैठने खातिर।" उस भीड़ में से एक सबसे अधिक उम्र वाली बूढ़ी काकी अपने कुनबे के परधान बेटे को झिड़कते हुए बोली। 

" हां भाई!..जाओ कोई।" उस काकी का परधान पुत्र दूसरो का मुंह ताकते हुए बोला सभी इस काम के लिए एक दूसरे को देख रहे थे वहीं मधुआ का सौतेला बाप शांति से बस एक ओर उस गुब्बारे को हवा में उड़ता देख खुश होते मधुआ को देख मुस्कुरा रहा था।गबरू तो हाथों में खटोला लिए बस रास्ते में था की तभी उसके कुनबे का एक और व्यक्ति आकर उससे बोला -"उस ओर कहां चला गबरुआ?" 

" खाट देने की सोच रहा वहां!" गबरू उंगली दिखाते हुए मधुआ के घर की ओर इशारा करता हुआ बोला। गबरू की बात सुन उस दूसरे शख्स उसी के जाति के मंगरूआ की आंखे बाहर की ओर फेका गई वो चिल्लाता हुआ गबरू के माथे को पिटता हुआ बोल -" कभी कभी तो गबरूआ ऐसी बात करता है तू कि देह जल जात है , ऊ लोग तोहार खटिया लेंगे , गोबर के साथ कपार भी पाथ आया का?" 

गबरू ने जरा चिंतित होकर कहा -" हां ,सही बोला हमारा न दिमाग चकरा गया अब याद आया ऊ बार का हुआ था , मगर सब तो ना गलत होते अपने भी कुनबे में हल्ला है कि ऊ लोग गलत है अब तू बता एक साथ सब गलत कइसे होवत है?" 

" तोहरे पर अभी अकल ना है तोहरा समझ न आवेगा भाग इहा से।" 

" खटोला है क्या?" एक धीमी आवाज गबरू और मंगरू के कानों में पड़ी जिसे सुन वो भौचक्के होकर मुड़े तो आंखे अब उनकी बाहर आने की नौबत आ गई क्योंकि नया नवेला दुलहा उनके द्वारे खड़ा था वो भी उस कुनबे का? कहीं आंखे तो खराब ना हो गई दोनो की। मधुआ का सौतेला बाप गबरू को हाथो में खाट लिए देख वहां उसके पास आ गया सबकी समस्या सुलझाने को साथ ही मधुआ भी नंगे पांव उसके पीछे भागता हुआ आया। 

" आप.... बाऊ जी!" गबरू हैरानी से उसे देख हकलाया। 

" खटोला मिलेगा क्या?" 

" हमारा खटोला?" 

" अगर काम है तो कोई बात नहीं ,हम जमीन पर बैठ जायेंगे?" 

" ना! ना! ऐसा गजब ना करो... दुलहा हो...जमीन पर बैठोगे ... लो...ले जाओ।" 

" मदद मिलेगा वहां तक ले जाने में।" मधुआ का सौतेला बाप सौम्यता भरे लहजे में बोला। 

मंगरूआ की तो सांस फूलने लगी -" समाज का बोलेगा।" 

" यही की आपने मदद की हमारी ,चलिए कोई कुछ नहीं बोलेगा।" सौतेला बाप बोला।और उसने खटोले को हाथ लगा कर गबरू की मदद से खटोले को घर तक लाने लगा ,सभी हक्के बक्के से उसे अपनी आंखे तरेर देख रहे थे और औरते तो अपने आंचल को दांतो तले चबाए सिर पीटे बैठी थी। 

" ई का गजब हो गया?" 

"ऐसा न करना था दुलहा जी!" 

" हम तो कह रहे मति मारी गई थी ,भ्रष्ट हो गया सब कुछ।" 

ऐसी ही अनेक बाते हर ओर फैल गई आखिर नए दुलहे ने ऐसा काम किया जो आज तक उन्होंने देखा न था , गलत था एक अस्पृश्य के हाथो से ऐसे सामान लेना और अपने घर के चौखट के सामने उसे लाना। 

" क्या गलत किया मैने?" 

" गलत....अपराध है , सिद्धि करना होगा!"  कुनबे के महान ज्ञाता विद्वान पंडित बाबा अपने तोंद को संभालते हुए एक छोटी सी मचिया से उठते हुए गुर्राए। 

" अपराध कैसा?" 

" अरे!....पुरखों ने आज तक ऐसा ना किया जो तुम कर आए ,अब तो पाप नाशक पूजा करवाने होगी , इग्यारह पण्डित आयेंगे दान दक्षिणा होगी , दाल - चावल, आटा , और तरकारी सब लगेगा ,पूजा सामग्री देनी होगी।" 

" क्यों?" मधुआ जो कब से सब चुप चाप सुन रहा था हैरानी से और अबोधता भरे भाव से बोला। 

" चुप!... अभी उम्र न है तेरी ये सब जानने की ,जैसा बोल रहे पण्डित जी कर लो क्या पता पुरखों का श्राप न मिल जाए।" 

" क्यों चुप रहे मधुआ...और चलिए मधुआ को चुप करवा दिया , मैं भी यही पूछता हूं क्यों , क्योंकि ये उन कुनबे का जहां के लोगो को आप लोग नीची जात का मानते है ,जात पात से ऊपर है इंसानियत और मैं नहीं करवा रहा कोई सिद्धि ,अब भी यहां रुकना है तो आइए , वरना राम! राम!" मधुआ का सौतेला बाप लगभग गुस्से में बिफरता हुआ कुनबे वालों से बोला।सभी लोग चुप हो लिए थे।और ये सब कोठर के भीतर से खिड़की से झांकते हुए मधुआ की मां फुलवा भी देख रही थी।उसे भी तो यही सब सिखाया गया था ,मगर पति परमेश्वर जो करे वही उसके लिए उसकी जात पात, मर्यादा और जीवन का मंतर था। 

" कछु गलत तो ना बोले दुलहा वैसे...अब एक ही गांव में रहते है तो दिक्कत का?" एक कुनबे वाला आदमी सहमति में सिर हिलाता बोला। 

" ऐसे कैसे...जब पुरखे नाराज हो तब मेरे पास न आना पूजा कारकर्म करवाने हूह!" पण्डित बाबा धधकते ज्वाला की तरह भड़के और वहां से चल दिए। आज का राशन का इंतजाम जो ना हुआ उनके और उनके पीछे कुछ गांव वाले उनकी बात को ब्रह्मा की बानी समझ निकल लिए सहमति का चोगा पहन ,मगर बाकी कुनबे वाले वहीं थे क्योंकि पसंद जो आ गई थी मधूआ के बाप की बात अरे नहीं नहीं...सौतेले बाप की बात! मधुआ अब खुश था उसका बाप उसके बात पर सहमत था कि तभी उसके सहभागी मित्र उसके कानों में आकर खुसफुसाये -" इतना खुश ना हो....नाटक है सब ,देख तो आज तक कोई ऐसे पण्डित बाबा की बात को अनदेखा किया है।" 

" गलत का बोला ऊ?" मधुआ मासूमियत से बोला।

" गलत?....सही का था?" 

" ऊ तो ना मालूम!" मधुआ गुब्बारे को देखता हुआ बोला। 

" तो बस... पण्डित बाबा ही सही है।" 

अब इस बात पर मधुआ सोच में पड़ गया क्या सच में ये सब दिखावा है पण्डित बाबा और गांव के लोग सही है।उस निश्चल मन वाले बच्चे के कच्चे मन में गई उथल पुथल हो रही थी मगर इन सबसे अनभिज्ञ सभी ये सोच रहे थे पण्डित बाबा रूष्ट होकर चले गए अब ब्याह कौन करवाएगा।उनकी मचिया वैसी ही खाली पड़ी हुई है सबके मुंह पर विषाद घेर चुका था।

कहानी जारी है.....!!!

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9 Comments

RISHITA

06-Aug-2023 10:02 AM

Nice

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Mahendra Bhatt

04-Nov-2022 11:11 AM

शानदार

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Pratikhya Priyadarshini

03-Nov-2022 11:58 PM

Bahut khoob 💐🙏

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